शनिवार, 14 मई 2011

धर्मनिरपेक्षता के नाम, सरस्वती वंदना कुर्बान


देवी सरस्वती

शिक्षा के मंदिर कहे जाने स्कूलों में होने वाली सरस्वती वंदना, जिसे ज्ञान की देवी कहा जाता है की धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कुर्बानी दे दी गई है। यह वाकया अजमेर में केन्द्रीय विद्यालय संगठन के स्कूलों- केन्द्रीय विद्यालय नः1 और 2 का है। यहां अब वार्षिकोत्सव तथा अन्य कार्यक्रमों में होने वाली सरस्वती वंदना नहीं होगी। सरस्वती वंदना पर रोक का यह निर्णय अजमेर में सक्रिय रेशनलिस्ट सोसायटी की आपत्ति के बाद लिया गया। निर्णय के बाद स्कूलों ने अपनी वेबसाइट से देवी सरस्वती का चित्र भी हटा लिया है। इस संबंध में रेशनलिस्ट सोसायटी के अध्यक्ष बी.एल. यादव का कहना है कि हमारी योजना केवल इन दो स्कूलों या केन्द्रीय विद्यालय संगठन के स्कूलों तक सीमित नहीं है। हम देश के सभी सरकारी तथा सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में इस तरह की किसी भी गतिविधि का विरोध करेंगे। इसके लिए हमने केन्द्रीय विद्यालय संगठन, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान बोर्ड के मुख्य सचिव (शिक्षा) को भी पत्र लिखा है। उनका कहना है कि विद्यालयों में हर मत-पंथ के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं, इसलिए किसी धर्म विशेष को ज्यादा अहमियत देने से देश की सेकुलर छवि धूमिल होगी।
अजमेर के इन स्कूलों में सरस्वती वंदना पर लगी रोक के बाद से ही इस निर्णय के विरोध में आवाजें उठने लगी हैं। 7 मई को शहर में छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने इस निर्णय के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया तथा सरस्वती वंदना को लेकर आपत्ति करने वाले रेशनलिस्ट सोसायटी के अध्यक्ष बी.एल. यादव का पुतला फूंका। अभाविप ने जिला अधिकारी मंजू यादव को ज्ञापन सौंपकर बी.एल. यादव के विरुद्ध कार्रवाई करने तथा स्कूलों में सरस्वती वंदना फिर से शुरू कराने की मांग की। केन्द्रीय विद्यालयों में सरस्वती वंदना पर रोक के निर्णय को निंदनीय बताते हुए अभाविप राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सुनील बंसल ने कहा कि सरस्वती वंदना पर रोक का यह प्रसंग निंदनीय है तथा संस्कार के माध्यमों को समाप्त करने का एक घृणित प्रयास है। उन्होंने कहा कि भारत में मां सरस्वती को कभी किसी मत-पंथ से जोड़कर नहीं देखा गया। इसे हमेशा ही ज्ञान और विद्या की देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। श्री बंसल ने कहा कि सरस्वती वंदना पर तो कभी किसी मुसलमान या ईसाई ने भी आपत्ति नहीं जताई, लेकिन कुछ तथाकथित सेकुलरवादी दूषित मानसिकता के चलते ऐसा करते हैं।
       निर्णय पर आश्चर्य प्रकट करते हुए शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के राष्ट्रीय सह-संयोजक अतुल कोठारी ने कहा कि सरस्वती वंदना में उन सभी गुणों (तेजस्वी, बुद्धिमान, बलषाली आदि) का वर्णन है, जो बालक में होने चाहिए। इसमें पंथ-सम्प्रदाय जैसी कोई बात नहीं है, इसलिए सरस्वती वंदना को किसी पंथ-सम्प्रदाय से जोड़कर देखना ठीक नहीं है। देश के स्कूलों में बड़े पैमाने पर इसका गायन किया जाता है। और तो और अनेक मुस्लिम संगीतकार भी सरस्वती वंदना करते हैं। अगर इसमें किसी पंथ विशेष की बात होती तो क्या मुस्लिम बंधु सरस्वती वंदना करते? यह सोचने का विषय है। सरस्वती वंदना का विरोध करना घृणित कृत्य है तथा बच्चों को संस्कारों से दूर रखने की साजिश है।
      नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एक अन्य केन्द्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि व्यक्तिगत रूप से मैं तो चाहता हूं कि सरस्वती वंदना हो, लेकिन देश के पंथ-निरपेक्ष होने का हवाला देकर इस तरह के लोग बच्चों को संस्कारवान बनने से रोक देना चाहते हैं। वहीं रोहिणी (दिल्ली) स्थित माउंट आबू पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्य ज्योति का कहना है कि मां सरस्वती ज्ञान की देवी तथा सद्बुद्धि की दाता हैं। इससे मन को शांति मिलती है। झंडेवालान स्थित सरस्वती विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य उपेन्द्र शास्त्री का कहना है कि सरस्वती वंदना का विरोध करने वाले लोगों को संकीर्णता की भावना से ऊपर उठना चाहिए।



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